The मध्यप्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन की दिशा में बैंकिंग संस्थाओं का योगदान: एक संदर्भात्मक परीक्षण
मध्यप्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन की दिशा में बैंकिंग संस्थाओं का योगदान: एक संदर्भात्मक परीक्षण
Abstract
वर्तमान वैश्विक संदर्भ में जहाँ आर्थिक उन्नति की धारा निरंतर तीव्र वेग से प्रवाहित हो रही है, वहाँ यह नितांत आवश्यक हो जाता है कि समाज के प्रत्येक वर्ग विशेषतः ग्रामीण समुदाय—को उस प्रवाह की मुख्यधारा से सशक्त रूप से जोड़ा जाए। आर्थिक समावेशन अथवा वित्तीय समावेशन केवल एक आर्थिक नीति नहीं अपितु सामाजिक समानता की वह संरचना है जो वंचितों, पिछड़ों एवं सुदूरवर्ती जनों को आर्थिक अवसरों से जोड़ने का माध्यम बनती है। यह प्रक्रिया मात्र बैंक खाता खोलने तक सीमित नहीं है बल्कि यह आर्थिक आत्मनिर्भरता, सम्मानजनक जीवन और सशक्त नागरिक भागीदारी की ओर अग्रसर एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक पहल है। भारत जैसे विशाल, विविधतापूर्ण और बहुलतावादी देश में जहाँ ग्राम्य जीवन ही सांस्कृतिक चेतना का मूलाधार है, वहाँ ग्रामीण बैंकिंग प्रणाली का दृढ़ीकरण राष्ट्रीय आर्थिक समावेशन की आधारशिला बन जाता है। इस परिप्रेक्ष्य में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (Regional Rural Banks) एक मध्यस्थ की भाँति कार्य करते हैं जो उन सामाजिक वर्गों तक पहुँच बनाते हैं जो अब तक परंपरागत बैंकिंग प्रणाली के परिधि से बाहर रहे हैं। ये बैंक न केवल सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को जमीनी स्तर तक पहुँचाते हैं, अपितु ऋण सुविधा, बीमा, पेंशन तथा प्रत्यक्ष लाभ अंतरण जैसे उपकरणों के माध्यम से आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में ठोस भूमिका निभाते हैं।
मध्यप्रदेश जो कि अपनी भौगोलिक विस्तार, प्राकृतिक विविधता तथा बहुस्तरीय सामाजिक संरचना के लिए विशेष रूप से जाना जाता है वित्तीय समावेशन के क्षेत्र में निरंतर सक्रिय प्रयास करता रहा है। मध्यांचल ग्रामीण बैंक जैसे संस्थान, इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु न केवल आर्थिक सेवाओं को ग्राम्य जीवन से जोड़ने में अग्रणी रहे हैं अपितु उन्होंने जनमानस में वित्तीय जागरूकता, साक्षरता और स्वावलंबन की भावना को भी जागृत किया है।
यह शोध-पत्र इसी क्रम में मध्यप्रदेश के ग्रामीण अंचलों में सक्रिय बैंकिंग संस्थाओं की भूमिका, उनके प्रभावक्षेत्र, अंतर्विरोधों एवं संभावनाओं का एक वैज्ञानिक, तात्त्विक और मानवीय विश्लेषण प्रस्तुत करता है। यह अध्ययन न केवल आर्थिक नीतियों की प्रभावशीलता का परीक्षण करता है वरन् भविष्य की संभावनाओं के लिए ठोस एवं व्यावहारिक सुझाव भी प्रदान करता है, ताकि वित्तीय समावेशन को केवल नीतिगत शब्दावली न रहकर, जीवन के यथार्थ से जुड़ा सामाजिक संकल्प बनाया जा सके।
यह प्रस्तावना स्पष्ट करती है कि प्रस्तुत शोध-पत्र केवल शैक्षणिक औपचारिकता की पूर्ति न होकर, एक गहन सामाजिक प्रतिबद्धता का अभिव्यक्त रूप है एक ऐसी अंतःप्रेरणा जो हर ग्रामीण नागरिक को सम्मान, अवसर और आत्मगौरव के साथ राष्ट्र की प्रगति में सहभागी बनाने की भावना से प्रेरित है। यह शोध जनभागीदारी और न्यायपूर्ण आर्थिक विकास की इसी चेतना को समर्पित है।
