सर विलियम जोन्स का साहित्यिक अवदानरू एक व्याख्यात्मक अध्ययन

लेखक

  • पामेली मण्डल सरदार पटेल यूनिवर्सिटी वारासिवनी रोड, बालाघाट म. प्र. Author

सार

अठारहवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध यूरोपीय बौद्धिक इतिहास में एक ऐसा काल था, जब पूर्व की सभ्यताओं, भाषाओं और साहित्य के प्रति गहरी जिज्ञासा और शोध उत्साह देखा गया। इसी कालखण्ड में सर विलियम जोन्स (1746दृ1794) का नाम एक ऐसे विद्वान के रूप में उभरकर सामने आया, जिन्होंने न केवल भारतीय साहित्य और संस्कृत भाषा को यूरोप के विद्वत्वर्ग तक पहुँचाया अपितु भारतीय काव्यध्परम्परा को वैश्विक साहित्यिक विमर्श में प्रतिष्ठित किया। एक न्यायविद, भाषाविद, कवि और अनुवादक के रूप में सर जोन्स का योगदान भारतीय और पाश्चात्य बौद्धिक परम्पराओं के बीच सेतु निर्माण का अनुपम उदाहरण है। श्भारत आगमन के उपरान्त, बंगाल में न्यायाधीश पद पर कार्य करते हुए उन्होंने संस्कृत, फारसी और अरबी भाषाओं का अध्ययन किया। इस अध्ययन का परिणाम था संस्कृत नाटकों, काव्यों, धर्मशास्त्रों और व्याकरणिक परम्पराओं का व्यवस्थित अनुवाद और प्रस्तुति। विशेष रूप से कालिदास के अभिज्ञानशाकुन्तलम्, जयदेव के गीतगोविन्द तथा मनुस्मृति जैसे ग्रंथों के अनुवाद ने यूरोपीय समाज को भारतीय साहित्य की कलात्मकता, दर्शन और विधिक विचार से परिचित करायाश् 2।
जोन्स का साहित्यिक अवदान केवल अनुवाद कर्म तक सीमित नहीं है श्उन्होंने 1784 में एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना करके भारतीय अध्ययन के लिए एक स्थायी संस्थागत ढांचा तैयार किया। साथ ही साथ संस्कृत, यूनानी और लैटिन भाषाओं के व्याकरणिक साम्य को इंगित करके उन्होंने तुलनात्मक भाषाविज्ञान की आधारशिला रखने का कार्य भी कियाश्2।
यद्यपि उनका कार्य औपनिवेशिक काल की ज्ञानदृराजनीति से अछूता नहीं था तथापि इसमें इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि उन्होंने भारतीय साहित्य को विश्व पटल पर पहचान दिलाई। प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य सर विलियम जोन्स के साहित्यिक अवदान का एक व्याख्यात्मक और आलोचनात्मक अध्ययन करना है जिसमें उनके अनुवाद दृष्टिकोण, संस्कृत अध्ययन की पद्धति, संस्थागत योगदान और दीर्घकालीन प्रभावों का समग्र विश्लेषण किया जाएगा।

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    संस्कृत विभाग, सरदार पटेल यूनिवर्सिटी वारासिवनी रोड, बालाघाट म. प्र.

प्रकाशित

2025-08-24

अंक

खंड

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